आन्ध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के एक ऐसे मंदिर जो विज्ञान को भी अचंभित करता दिखाई देता है। लेपाक्षी मंदिर जिसे वीरभद्र मंदिर भी कहा जाता है, इस मंदिर में लोग दूर-दूर से एक ऐसा चमत्कारी, छत से झूलता हुआ खम्बा देखने आते हैं जिस पर इस मंदिर की पूरी मजबूती टिकी है। इस झूलते हुए पिलर के बारे में जानने के पहले चलिए जानते हैं लेपाक्षी मंदिर के इतिहास के बारे में!!!

 

 

 

लेपाक्षी मंदिर और भगवान राम के साथ इसका संबंध

 

मंदिर के निर्माण के बारे में दो मान्यताएँ हैं। पहली मान्यता यह है कि मंदिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था और मंदिर का इतिहास भी रामयणकालीन है।
रामायण में दिए गए उल्लेख के अनुसार जब रावण माता सीता का हरण कर उन्हें लंका ले जा रहा था तब जटायु ने सीता माता को रावण के चंगुल से बचाने के लिए रावण से युद्ध किया। इस लड़ाई में जटायु बुरी तरह घायल होकर गिर गए। जब राम इस जगह पर आए तो उन्होंने जटायु को अचेत अवस्था में देखा और कहा ले पाक्षी कहा ले पाक्षि अर्थात उठो पक्षी। इस तरह इस स्थान का नाम लेपाक्षी पड़ गया। 

 

 

दूसरी मान्यता के अनुसार, वर्तमान दृश्य मंदिर के निर्माण के बारे में प्रारम्भिक प्रमाण सन् 1533 के दौरान विजयनगर साम्राज्य से संबंधित हैं। मंदिर में स्थित शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि मंदिर का निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा अच्युत देवराय के अधिकारियों विरूपन्ना और विरन्ना ने करवाया था। कूर्मसेलम पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य की मुराल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।

 

 

लेपाक्षी मंदिर का रहस्यमयी लटकता हुआ खंभा

 

यह देखिये!!! मुख्य मंदिर के ठीक सामने है यह नाट्य मंडप। इसमें कुल 70 खंबे हैं। इस नाट्य मंडप के उत्तर-पूर्वी कोने में वो रहस्यमयी पिलर है जो जो जमीन से लगभग आधा इंच ऊपर झूलता हुआ दिखाई देता है। लेकिन हैरानी इस बात की है कि खुद जमीन पर नहीं टिके होने के बावजूद, आठ फीट लम्बे इस पिलर पर पूरा मंदिर टिका हुआ है। 

 

 

इस रहस्यमयी आर्किटेक्चर की गुत्थी को सुलझाने के लिए सन् 1902 में ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन छानबीन के लिए लेपाक्षी मंदिर आये। हैमिल्टन ने जैसी ही एक लोहे की छड़ को इस खंबे के नीचे डालकर पिलर को खिसकाने की कोशिश की तो बाकी पिलर्स भी अपनी जगह से खिसकने लगे। जिसकी वजह से हैमिल्टन को अपनी इन्वेस्टीगेशन को तुरंत रोकना पड़ा। 

 

इस मंदिर को देखकर पता चलता है कि प्राचीन तकनीक ने एंटी-ग्रेविटी और लेविटेशन को कितने अच्छे से प्रस्तुत किया था, क्योंकि मॉडर्न प्रौद्योगिकी में शायद ही कोई रास्ता हो जिससे कि 20 फुट का कई टन वजनी ग्रेनाइट ब्लॉक, हवा में लटका सकता है।

 

 

क्या लेपाक्षी मंदिर का लटकता हुआ खंभा एक झूठी कहानी है?

 

एक रिसर्च यह भी कहती है कि आप किसी कपड़े के टुकड़े को इस पिलर के एक सिरे से सरका सकते हैं, लेकिन दूसरे सिरे से खींच नहीं सकते। यदि यह पिलर पूरी तरह से हवा में लटका हुआ है, तो दूसरी तरफ से भी कपड़ा खींचा जाना चाहिए। जो कपडा इन्वेस्टीगेशन के दौरान खींचा गया, वह दूसरी ओर फंस गया। उस रिसर्च के अनुसार, यह खंभा वास्तव में हवा में लटका हुआ नहीं है, क्योंकि इसका एक कोना स्पष्ट रूप से ज़मीन पर टिका हुआ है, जो कि अभी भी खड़ा है। यदि आप इसकी बारीकी से जांच करते हैं, तो आप इसकी पुष्टि कर सकते हैं। स्तंभ गुरुत्वाकर्षण-विरोधी या उत्तोलन का उपयोग नहीं करता है।

 

 

लेपाक्षी में आश्चर्यचकित कर देने वाला वीरभद्र मंदिर

 

लेपाक्षी मंदिर या वीरभद्र मंदिर तीन भागों में बंटा है- मुख मंडप, अर्धमंड़प और कल्याण मंडप !

लेपाक्षी मंदिर के प्रांगण में एक कल्याण मंडप है, जिसका निर्माण अधूरा रह गया था। इस मंडप के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है!! 

 

 

कुछ मंत्रियों ने राजा अच्युत देवराय से यह शिकायत कर दी कि वीरू पन्ना मंदिर के निर्माण में गलत तरीके से राज्य के खजाने का इस्तेमाल कर रहे हैं और इस शिकायत के बाद राजा ने आदेश दिया कि वीरू पन्ना की दोनों आँखें निकाल ली जाएं। जब वीरू पन्ना तक यह बात पहुंची तो उन्हें बहुत दुख हुआ कि राजा ने बिना जांच पड़ताल के इस आरोप को कैसे सच मान लिया। वीरू पन्ना ने तभी दुःख में स्वयं ही अपनी दोनों आँखे निकाल ली और सामने की दीवार पर फेंक दी। कहते हैं की खून के ये दो निशान आज भी मंदिर की दीवार पर दिखाई देते हैं और इस कहानी की गवाही देते हैं।

 

 

विशालकाय पदचिह्न

 


भले ही पुरातत्वविदों का यह मानना है कि यह मंदिर सिर्फ 500 साल पहले बनाया गया था, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण विशाल कद के देवी-देवताओं ने बहुत पहले किया था। इस बात की पुष्टि मंदिर में बने इस विशाल पदचिह्न से की जा सकती है, जो लगभग 25 से 35 फीट खड़े एक विशालकाय व्यक्ति या किसी देवी-देवता का हो सकता है। 

 

 

सबसे बड़ी नंदी प्रतिमा लेपाक्षी में!

 

इस विशालकाय पैर के चिन्ह के अलावा, मंदिर से 200 से 500 मीटर की दूरी पर स्थित नंदी जी की मूर्ति एक ही पत्थर को तराश कर बनाई गई है। एक ही चट्टान से बनी यह मोनोलिथिक नक्काशी, बहुत ही सुन्दर रूप से उकेरी गई है और लगभग 15 फीट लंबी और 27 फीट चौड़ी है। ये नंदी की अब तक की सबसे बड़ी प्रतिमा है। 

 

इस मूर्ती की एक खास बात और है कि इसमें नंदी जी अकेले बैठे दिखाई देते हैं। भारतीय वास्तुकला के अनुसार, प्रत्येक नंदी प्रतिमा को शिव लिंगम के सामने  प्रतिष्ठित किया जाता है लेकिन जैसा कि आप देख सकते हैं, इसके सामने कोई शिवलिंग नहीं है। 

 

 

अब सवाल उठता है कि क्या प्राचीन निर्माता नंदी की सबसे बड़ी मूर्ती बनाकर, उसके सामने शिव लिंगम रखना भूल गए थे? 

 

इस सवाल का जवाब पुरातत्वविदों के पास नहीं है, क्यूंकि अभी तक इसे प्रमाणित करने वाले साक्ष्य नहीं मिले हैं, लेकिन स्थानीय लोग इस बात का दावा करते हैं कि नंदी जी की मूर्ती से जुड़ा शिवलिंग 500 मीटर दूर मंदिर की दीवारों के अंदर पाया जाता है। यह विशाल लिंगम लगभग 12 फीट लंबा है, और 7 सिर वाले नाग देवता द्वारा संरक्षित है। इस प्रकार के इस लिंगम को नागलिंगम भी कहा जाता है और यह दुनिया का सबसे बड़ा नागलिंगम है। 

 

 

प्राचीन वैदिक ग्रंथों में लिंगम की पूजा करने की एक विधि का उल्लेख है। प्राचीन लोगों नंदी जी के सींगों पर दो उंगलियां रखकर, उँगलियों और सींगों के बीच में से देखकर, शिवलिंग के दर्शन करते थे। यदि आप इस विशाल नंदी नक्काशी के इन दो सींगों को देखें, तो आप आज भी विशाल शिवलिंग के आधे दर्शन कर सकते हैं। मंदिर की दीवारों के कारण सिर्फ आधे शिवलिंग के दर्शन हो पाते हैं। 

इसके अलावा मंदिर की दीवारों पर बने म्यूरल या भित्ति चित्र, भारतीय चित्रकला का बेहतरीन उदाहरण देते हैं।

आंध्रप्रदेश का यह लेपाक्षी मंदिर, प्राचीन वास्तुकला की भव्यता को दर्शाने वाला एक बेहतरीन उदाहरण है। 

 

 

इस मंदिर के बारे में अधिक जानने और लेपाक्षी मंदिर के अद्भुत दृश्यों को देखने के लिए, Dainik IQ यूट्यूब चैनल को follow करें।

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