10 रुपए के नोट पर दिखने वाली यह जगह, भारतीय संस्कृति और वास्तुकला का एक ऐसा उदाहरण है, जिसे देखकर आप भी कहेंगे कि ऐसा तो सिर्फ भारत में ही हो सकता है। हम बात कर रहे हैं कोणार्क के सूर्य मंदिर की। ओडिशा के भुवनेश्वर से करीब 65 किलोमीटर दूर, बंगाल की खाड़ी की कोस्टलाइन पर बना, 700 साल पुराना ये मंदिर कई कहानियों और रहस्यों से घिरा हुआ है। मंदिर के बंद दरवाज़ो के पीछे के रहस्यों से लेकर एक सदी से भी पहले के नर्तकों की भूतिया आत्माओं तक, ये मंदिर बहुत सारे रहस्यों का घर है। 

चलिए जानते हैं इस विशाल मंदिर के इतिहास और रहस्यों के बारे में!!!!

 

13वीं सदी में बना कोणार्क का ये सूर्य मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। “कोण” का अर्थ है “कोना” या “किनारा" और “आर्क” का अर्थ है “सूर्य”, जब ये दोनों शब्द जुड़ते हैं तो बनता “सूर्य का कोना” या “सूर्य का किनारा”।

अकबर के प्रख्यात दरबारी इतिहासकार अबुल फजल के अनुसार, कलिंग वास्तुकला का ये स्मारक, सूर्य मंदिर, पूर्वी गंगा राजवंश के राजा नरसिम्हा प्रथम के शासनकाल में बनवाया गया था। नरसिम्हा प्रथम ने ही ओडिशा के जगन्नाथ पूरी मंदिर का निर्माण पूरा करवाया था। माना जाता है कि इसे बंगाल की खाड़ी के करीब 12 एकड़ ज़मीन पर बनाया गया और इस दौरान साम्राज्य का पूरा का पूरा राजस्व इसी पर खर्च कर दिया गया। 1984 में इस मंदिर को UNESCO की सांस्कृतिक विरासत स्थल की सूची में शामिल किया गया।

 

 

 

कैसा है सूर्य मंदिर कोणार्क का स्थापत्य?

 

मंदिर की अधिकांश संरचना बिगड़ चुकी है, लेकिन अभी भी यह भारत के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को काले ग्रेनाइट से बनाया गया था और इसे पूरा करने में 12 साल लग गए थे।
स्थापत्य इतना कमाल का है कि इसे ऐसे डिजाईन किया गया है कि सूरज की रोशनी की पहली किरण सीधे मुख्य द्वार पर पड़ती है। मंदिर में बने पहियों पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें, जो धूपघड़ी का काम करती हैं, समय बताने के लिए आज भी इस्तेमाल की जा सकती हैं।

मंदिर को एक विशाल रथ के रूप में बनाया गया है, जिसमें 24 विशाल पहिए यानि कि wheels हैं, दोनों तरफ 12, जो सात घोड़ों द्वारा खींचे जा रहे दिखाई देते हैं। 12 जोड़ी पहिए साल के 12 महीनों को, और  7 घोड़े 7 दिनों का प्रतीक हैं। 

प्रवेश द्वार पर दो विशाल शेरों का पहरा दिखाई देता है, प्रत्येक एक युद्ध के हाथी को मार रहा है और हाथी के नीचे एक आदमी है। शेर अभिमान का प्रतीक बना है, और हाथी धन का!! यह दृश्य हमें बताता है कि अत्यधिक अभिमान और धन कैसे इंसान को कुचल देते हैं। 

 

कोणार्क का सूर्य मंदिर को कलिंग या उड़ीसा शैली में बनाया गया है, जो हिंदू मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का एक भाग है। माना जाता है कि उड़ीसा शैली नागर शैली को सबसे अच्छे से प्रस्तुत करती है। वैसे तो ओडिशा पूर्वी भाग में आता है, पर फिर भी इस मंदिर को उत्तर भारत की नागर शैली में बनाया गया है। 

ऐसा करने का एक कारण यह भी हो सकता है कि गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन के राज्य में कई उत्तरी भारत के क्षेत्र भी शामिल थे, इसलिए हो सकता है कि उन्होंने और उनके उत्तरिधिकारियों उत्तर भारत की कला से भी प्रभावित हुए हों, जिसका प्रभाव कोणार्क के सूर्य मंदिर में भी दिखता है।

 

सूर्य मंदिर की सुंदर मूर्तियों, और वास्तुकला ओडिशा शैली की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यहाँ की मूर्तियाँ अलग-अलग प्रकार के प्रसंगों को प्रस्तुत करती हैं, कुछ मूर्तियाँ धार्मिक विषयों पर, तो कुछ मूर्तियाँ कामुक प्रसंगों पर बनी दिखती हैं। एक मूर्तिकला पैनल ऐसा भी है जो एक जिराफ को दर्शाता है। यह पैनल स्पष्ट रूप से उस व्यापार को सांकेतिक करता हैं जो ओडिशा अफ्रीका के साथ करता था। 

 

 

 

 

 

क्या है 118 साल पहले बंद दरवाज़ों का रहस्य?

 

भारत में सैकड़ों प्राचीन भव्य मंदिर हैं जो अपनी बेजोड़ संरचना से आधुनिक इंजीनियरिंग और विज्ञान को भी हैरान कर देते हैं, कोणार्क सूर्य मंदिर के रहस्य भी कुछ ऐसे ही हैं, जो बेहद पेचीदा हैं। मंदिर के दरवाजे 118 से अधिक वर्षों से बंद हैं। चलिए जानते हैं ऐसे रहस्यों के पीछे छुपे हुए राज़ !!!


सालों पहले क्यों बंद कर दिया गया था मंदिर...

- कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदाओं के कारण जब मंदिर खराब होने लगा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह रेत से भर दिया। ताकि ये सलामत रहे और इस पर किसी आपदा का असर न पड़े।

- इस काम में तीन साल लगे और 1903 में ये पूरी तरह पैक हो गया।

- वहां जाने वाले को कई बार यह पता नहीं होता है कि मंदिर का अहम हिस्सा जगमोहन मंडप बंद है।

- बाद में आर्कियोलॉजिस्ट्स ने कई मौकों पर इसके अंदर के हिस्से को देखने की जरूरत बताई और रेत निकालने का प्लान बनाने की बात भी कही।

- हाल ही में CBRI की टीम ने ENDOSCOPY कर मंदिर के भीतर के फोटो लिए हैं और इसके वीडियो भी बनाए हैं।

- फोटो और वीडियो की स्टडी जारी है। रिपोर्ट की एक कॉपी Archaeological Survey of India (ASI) के हेड क्वार्टर को भेजी भी जा चुकी है।

 

 

क्या आप जानते हैं कि कोणार्क सूर्य मंदिर में पूजा विधान जैसा कुछ नहीं होता!!


माना जाता है कि राजा नरसिम्हदेव ने मंदिर के निर्माण के लिए एक समय सीमा निर्धारित की थी, पर दधी नौटी के रूप में जाना जाने वाला मुकुट पत्थर (lodestone) लगभग 52 टन वजन का एक पत्थर था, जिसे  बार-बार प्रयास के बाद भी 1200 मजदूर इसे लगाने में असफल हो गए। अचानक, धर्मपाद नाम का एक बच्चा प्रकट हुआ, जो बिशु महाराणा जो सूर्य मंदिर के वास्तुकार का पुत्र होने का दावा करता था और जिसने 1200 मजदूरों की जान बचाने की जिम्मेदारी ली थी। 1200 मजदूरों की जान बचाने के लिए उसने राजा के अहंकार को बदलने के लिए मंदिर के ऊपर से चंद्रभागा नदी में छलांग लगा दी। लोगों का मानना है कि 12 वर्षीय बालक स्वयं सूर्य देवता थे, और तब से कोणार्क मंदिर में पूजा अनुष्ठान नहीं किया गया है।

 

इस मंदिर के सबसे अविश्वसनीय मान्यताओं में से एक यह है कि इसके बनते वक्त चुंबक के उपयोग की वजह से सूर्य भगवान की मूर्ति हवा में लटकी हुई थी। जैसे ही आप मुख्य मंदिर में प्रवेश करते हैं, आपको एक लंबी मूर्ति हवा में लटकी हुई दिखाई देगी। यह कैसे हुआ यह सालों तक रहस्य बना रहा।  कोणार्क चारों तरफ से चुंबकीय क्षेत्र था, मूर्ति का हवा में लटका होना इसका एक कारण हो सकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस मंदिर के अंदर "lodestone" पत्थर स्थापित किया गया था जो एक प्राकृतिक मैगनेट के रूप में काम करता है, इस "लोडस्टोन" विशाल चुम्बक के कारण कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदर स्थापित भगवान सूर्य की मूर्ति हमेशा हवा में लटकी रहती थी, जो अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं थी। 

अलग-अलग लोग अब अलग-अलग कहानियां सुनाते हैं कि इस चुंबक का क्या हुआ और अब यह कहां है, यह आज भी रहस्य है। 
सबसे लोकप्रिय सिद्धांत यह है कि यह मंदिर मूल रूप से समुद्र के किनारे स्थित था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, समुद्र का जल स्तर कम होता गया और यह मंदिर समुद्र तट से लगभग 2 किलोमीटर दूर हो गया।

एक लोक-साहित्य के अनुसार, पत्थर का चुंबकीय आकर्षण इतना मजबूत था कि यह उस क्षेत्र से गुजरने वाले जहाजों के compass में गड़बड़ी पैदा कर देता था। इससे नाविकों (sailors) के लिए Navigation ज्यादा कठिन हो जाता था। माना जाता है कि, पुर्तगाली नाविक अपने जहाजों को बचाने के लिए इस चुंबक और भगवान सूर्य की मूर्ति को अपने साथ मंदिर से ले गए, जिससे कोणार्क सूर्य मंदिर चुंबकीय प्रभाव से बाहर निकल गया।

 

अभी सूर्य मंदिर, समुद्र से 2 किमी दूर स्थित है, लेकिन पुराने समय में, यह बहुत करीब था। तो, मंदिर का उपयोग यूरोपीय नाविकों द्वारा एक navigational point के रूप में किया गया था। उन्होंने इसे इसके गहरे रंग और इसकी चुम्बकीय शक्ति के कारण “ब्लैक पैगोडा” का प्रतीक माना, जो जहाजों को किनारे पर खींचता था और जहाजों को नष्ट कर देता था।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर प्राकृतिक कारणों की वजह से क्षतिग्रस्त हो गया था, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर को जानबूझकर मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा, मुख्य रूप से गौर सल्तनत के जनरल कालापहाड़ ने, इसे नष्ट करने का प्रयास किया गया था। जो भी कारण हो, मंदिर को 1556 और 1800 के बीच बहुत क्षति सहना पड़ी।

 

18th century के last phase के दौरान, अरुणा स्तम्भ नाम का एक अलंकृत स्तंभ कोणार्क सूर्य मंदिर से पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में transfer किया गया था, जो आज भी वहां मौजूद है। मंदिर के मौजूदा हिस्से को ब्रिटिश काल की पुरातात्विक टीमों द्वारा आंशिक रूप से पुनर्स्थापित किया गया था।

 

 

 

क्या कोणार्क का सूर्य मंदिर भूतिया है?

 

एक रहस्य यह है कि कई देवदासियाँ अपने प्रदर्शन से पहले या बाद में मंदिर के हॉल के अंदर रात बिताती थीं। नतीजतन, जब पुर्तगाली नाविकों ने चुम्बक को हटाने के प्रयास में मंदिर पर हमला किया, तो उन्होंने मंदिर के ज़्यादातर हिस्से को नष्ट कर दिया। इस हमले के दौरान कई देवदासियां मारी गईं। आस-पास के स्थानीय लोग बताते हैं कि जब सूर्य देवता सोते हैं या कोणार्क में सूर्यास्त होता है, तो लोगों को मंदिर के अन्दर कुछ लड़कियों की बात करने की और उनके घुंघरूओं की आवाजें सुनाई देती हैं, ऐसा लगता है जैसे वे पीछे से भागती हुई आ रही हों। 

 

कई सारे शोध के बाद भी कोणार्क सूर्य मंदिर का यह रहस्य अनसुलझा हुआ है। 

 

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, तेज भूकंप, गर्जना या बिजली गिरने से मंदिर को बहुत नुक्सान हुआ। हालांकि, इस क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर भूकंप आने का कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा, कोई गड़गड़ाहट या बिजली मंदिर की दीवारों में प्रवेश नहीं कर सकती थी, जो कि 20-25 फीट मोटी हैं। हालाँकि,  इन सारी जानकारियों का कोई भी एतिहासिक साक्ष्य नहीं है!!

 

 

 

कोणार्क के सूर्य मंदिर का इतिहास, रहस्य और रोचक तथ्य इसे एक अनूठा और अविस्मरणीय अनुभव बनाते हैं। प्राचीन भारतीय वास्तुकला और इंजीनियरिंग के प्रमाण के रूप में, यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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