हमारे शरीर में सात प्रमुख चक्र हैं। योग के अनुसार प्राण या आत्मिक ऊर्जा, विचार, भावनाओं और भौतिक शरीर के केंद्र बिंदु को चक्र कहते हैं अथवा मानव शरीर के भीतर ऊर्जा केंद्र को चक्र कहते हैं। यह अंगों के कार्य से लेकर प्रतिरक्षा प्रणाली और भावनाओं तक अपनी सभी प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। मनुष्य के शरीर में मूलाधार से सिर के ताज तक सात चक्र होते हैं। प्रत्येक चक्र की अपनी कंपन आवृत्ति, रंग होता है और यह विशिष्ट कार्यों को नियंत्रित करते हैं। यह चक्र भावनात्मक प्रतिक्रियाओं, इच्छाओं या विकृतियों, आत्मविश्वास या भय के स्तर, तथा  यहां तक ​​की शारीरिक लक्षणों और प्रभावों के माध्यम से लोगों को वास्तविकता का अनुभव करने का तरीका निर्धारित करते हैं। चक्रों में ऊर्जा अवरुद्ध होने से चिंता, सुस्ती, या खराब पाचन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

दैनिक जीवन में मनुष्य योग अभ्यास के माध्यम से अपने चक्रों को जागृत कर सकता है।  मनुष्य में इन चक्रों का संतुलन एवं शुद्धिकरण जरुरी है। चक्रों के संतुलित होने पर मनुष्य की काया निरोगी होती है, आकर्षक व्यक्तित्व एवं उसमें सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। चक्रों को संतुलित करने के लिए, ताई ची, रेकी, एक्यूप्रेशर और एक्यूपंक्चर, योगाभ्यास अथवा एरोमाथेरेपी का उपयोग किया जाता है।

हमारे शरीर में सात प्रमुख चक्र कुछ इस प्रकार हैं -

 

1.  मूलाधार चक्र – इसे मूल चक्र भी कहते हैं। यह चक्र मेरुदंड के मूल में सबसे नीचे स्थित है एवं यह लाल रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इसके असंतुलित होने पर प्रोस्टेट की समस्याएँ, मोटापा, गठिया रोग, वैरिकाज़ नसों, पीठ के निचले हिस्से की समस्याएँ, कूल्हे की समस्याएँ, घुटनों में सूजन जैसी समस्याएँ होती हैं।

 

2.  स्वाधिष्ठान चक्र – यह चक्र पेट के निचले भाग में स्थित है एवं यह नारंगी रंग का प्रतिनिधित्व करता है। असंतुलित स्वाधिष्ठान चक्र की वजह से प्रजनन संबंधी, नपुंसकता, मासपेशियों में दर्द, पीठ के निचले भाग में दर्द, आदि बीमारियाँ होती हैं।

 

3.  मणिपुर चक्र – यह चक्र नाभि में स्थित एवं यह पीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस चक्र के असंतुलित होने की वजह से पाचन संबंधी विकार, अजीर्ण, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अल्सर जैसी शारीरिक बीमारियाँ होती हैं।

 

4. अनाहत चक्र – यह चक्र हृदय में स्थित है एवं यह हरे और गुलाबी रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस चक्र के असंतुलित रहने पर उच्च / निम्न रक्तचाप, हृदय से संबंधित विकार और फेफड़ों का कैंसर तथा स्तन कैंसर, एलर्जी, बुखार, अस्थमा, क्षय (टीबी) जैसी बीमारियाँ होती हैं।

 

5. विशुद्ध चक्र – इसे कंठ चक्र भी कहते हैं। यह चक्र कंठ में स्थित है एवं यह लाल या नीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस चक्र के असंतुलित रहने पर मुख्य रूप से मुँह, दाँत, जबड़े, गला, गर्दन, भोजन नलिका, थायरॉइड ग्रंथी और रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित रोग संबंधी समस्याएँ रहती हैं।

 

6.  आज्ञा चक्र -  इसे अजना चक्र भी कहते हैं। यह चक्र भौंहों के मध्य केंद्र में स्थित है एवं यह चक्र बैंगनी, इंडिगो, या गहरे नीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस चक्र के असंतुलित रहने पर तनाव, सिर दर्द  (माइग्रेन), दृष्टीदोष, अदूरदर्शिता, दूर की चीजें देखने की क्षमता में दोष, ग्लूकोमा, मोतियाबिंद, साइनस एवं कान की समस्याएँ जैसे विकार होते हैं।

   

7.  सहस्त्र चक्र – यह चक्र सिर के ताज पर स्थित है इसे शीर्ष चक्र भी कहते हैं एवं यह चक्र सफेद या बैंगनी रंग का प्रतिनिधित्व करता है। इस चक्र के सक्रिय न रहने पर खिन्नता, पार्किन्सन रोग, सिजोफ्रेनिया, मिर्गी, अल्जाइमर जैसे रोग एवं सिर दर्द, उदासी और चक्कर आने की प्रवृत्ति होती है। इस चक्र को योगाभ्यास के द्वारा संतुलित किया जा सकता है।

 

यह 7 चक्र शरीर में शक्तिशाली बिंदु हैं जो आपको जीवन में एक स्वस्थ शारीरिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं। इस कारण से, यह महत्वपूर्ण है कि आप इन ऊर्जा केंद्रों का नियमित रूप से निरीक्षण करें और अपने व्यस्त दिन में से प्रत्येक में प्राण के प्रवाह को बेहतर बनाने के लिए समय निकालें।

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